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Mahashivratri 2024: जानिए सावन में शिव चालीसा पढनें के लाभ, ऐसे पूजा करनें से खुश होते है भोलेनाथ

शिव चालीसा के सस्स्वर पाठ से मुश्किल काम को बहुत ही आसान किया जा सकता है। जाननें क लिए आगे पढिए।भगवान शिव चालीसा का श्रावण मास में करें 40 बार पाठ, ऐसे सरल विधि से करें पाठ और देंखें लाभ, How to celebrate Mahashivratri 2024

शंकर जी की चालीसा का निरंतर 40 बार पाठ करने से मनोकामना पूरी और समस्या दूर होती है। शिव चालीसा के आसान शब्दों से भगवान भोलेनाथ को सावन में प्रसन्न किया जा सकता है।

ये है शिव चालीसा का महत्व-

भोलेबाबा की चालीसा के आसान शब्दों से प्रसन्न किया जा सकता है। शिव चालीसा के सस्स्वर पाठ से मुश्किल काम को बहुत ही आसान किया जा सकता है। तो सावन में जरुर करें पूजा

शिव चालीसा की 40 शुभ पंक्तियां चमत्कारी हैं। Shiv Chalisha

भक्तों के लिए सरल है लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है शिव चालीसा। चालीसा का निरंतर 40 बार पाठ करने से वह सिद्ध हो जाता है इसी तरह मनोकामना और समस्या के अनुसार चालीसा की पंक्ति याद कर 40 बार पाठ करने से वह भी आश्चर्यजनक रुप से मदद करती है। तो इस सावन जरुर करें महादेव की पवित्र पूजा।

भगवान शिव की चालीसा के पाठ की सरल विधि | Shiv Chalisha Padhane ki saral vidhi Hindi Main pdf

  • भक्तों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • अपना मुंह पूर्व दिशा में रखें और कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
  • भक्तों को पूजन में सफेद चंदन, चावल, कलावा, धूप-दीप पीले फूलों की माला और हो सके तो सफेद आक के फूल भी रखें और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें।

कितनी बार और कैसे करें शिव चालीसा का पाठ | kaise, aur kitani bar karain shiv chalisha ka path

  • भक्तों को पाठ करने से पहले गाय के घी का दिया जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखें।
  • शिव चालीसा का 3,5,11 या फिर 40 बार पाठ करें।शिव चालीसा का पाठ बोल बोलकर करें जितने लोगों को यह सुनाई देगा उनको भी लाभ होगा।
  • पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करें और भगवान शिव को प्रसन्न करें
  • पाठ पूरा हो जाने पर कलश का जल सारे घर में छिड़क दें।

भगवान शिव का सम्पर्ण पाठ हिन्दी में

चलिए शुरु करते है शिव चालीसा, बिल्कुल शान्त मन से पढिए शिव चालीसा और भोलेबाबा को याद कीजिए।


दोहा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥


शिव चालीसा आरम्भ

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारण ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तधाम शिवपुर में पावे॥

कहत अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्य नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥


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Posted by: Neelu Gupta

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